
Simple Poem on nature in Hindi | Poem on Nature in Hindi by famous poets
Adhuri Hasrate has a collection of Poem on Nature in Hindi.
Hindi Poem on Nature: Is Mausam Me
सर्द हवाँए इस मौसम में,
तेरी आहट का आगाज़ शुरु अब करती है !
गूँज जो दिल से दिल में उठी है,
उस आहट पर हर धड़कन मेरी अब मरती है !
आये जब बसंत का पतझर महीना,
पुरानी मेरी हर अक्स अब गिरती है !
अक्स मेरा जो तुझसे जाकर जो जुड़ती है,
तुझमें मिलकर अब ये नया मुझे कर देती है !
इन सारी मदहोश फिज़ाओ की लड़ीयाँ,
मिलकर तुझमें हर गम, मेरा ले लेती है !
बरसते सावन की ये घनघोर बौछारें,
यादों मे बस तुझसे सिमटती है !
ले जा के बहाकर मुझे अपने साथ,
बस तुझमे ये समां देती है !
गर्म -गर्म कोयले की अंगारों सी जलते हुए,
जल-जलकर तेरी आगोश में जा मिला देती है !
गरमी में बर्फ सी गिरती हुई,
मेरे रूह मे ये अक्सर पिघलती है !
बहार मे तेरी चाहतों के फूल खिलते गए
बीन खिले फुल सा ये उपवन सा मेरे मन को महकती है !
गुलाबों की महक लिए तुम आते गए
गुलाबो की तरह गुलबदन बन कर यूँ कली निखरती है !
खोते गयें कुछ इन ऋतुओं के जैसे हम,
ऐसी ही जैसे ये अनगिनत रंग-बिरंगे बिखेरती है !
Simple Poem on nature in Hindi: Un Gunjti Waadiyo Me
इश्क़ है मुझे उन गूंजति वादियां से है,
जो पुकारो तो बदले में जवाब तो देती है !
इश्क़ है मुझे उन उछलती समंदर की लहरों से,
जो लहर बन बार-बार पास होने का अहसास तो देती है !
इश्क़ है मुझे उन घने पेड़ों से,
जो चिलचीलाती धूप में साया पसार देती हैं !
इश्क़ है मुझे उन ठन्डे कोहरों से,
जो अहले सुबह मोति सी चमक से आँखों को सुकून देती है !
इश्क़ है मुझे चिड़ियों की चहक से,
जो मधुर गीत से भी कानों को भाति है !
इश्क़ है मुझे बारिश की बंदों से,
जो मेरे महबूब के छूने का अहसास दिलाती है !
इश्क़ है मुझे बसंत की पतझर से,
जो बीते राह को भुला कर नये पथ को दर्शाती है !
इश्क़ है मुझे उस चांद की चान्दनी से,
जो गरम रौशनी ले के ठंडी छाव अक्सर बरसाती है !
इश्क़ है मुझे उन तारों की टिमटिमाहत से,
जो रात में यूँ खुल के पंख पसारे जगमगाती है !
इश्क़ है मुझे उन सारी हसीन वादियों से,
जो हर लम्हा मुझे जिने का राह दिखाती है !
Poem on Nature in Hindi
गहन न गिरिवर सघन वन में,
बहकती पूर्वा पवन में
दहकते धरती गगन में,
महकने दो प्यार मेरा,
नागफनियों की गली में फूल का व्यापार मेरा !
झोंपडी़ या महल मैं कब देखता हूँ,
हर खुली छत पर कबूतर भेजता हूँ,
लोग रहतें हैं जहाँ मुहँ छुपाकर,
मैं उन्हीं गलियों में दर्पन बेचता हुँ,
चोट खाकर लोग गिरतें हैं जहाँ पर,
हैं वहीं मरहम का कारोबार मेरा,
नागफनियों की गली में फूल का व्यापार मेरा !
खून के छीटें धरा से धो रहा हूँ,
बेसहारों का सहारा हो रहा हूँ,
तुम जहाँ बारुद की फसलें उगाते,
मैं उन्हीं खेतों में मेंहदी बो रहा हूँ,
दहकते अंगार बिखरे जिस गली में,
हैं वहीं चंदन से निर्मित द्वार मेरा,
नागफनियों की गली में फूल का व्यापार मेरा !
दिल में तेरे प्यार की दुनिया दफन है,
भोर लगती दोपहर जैसी तपन है,
मैं इधर शादी का जोडा़ बुन रहा हूँ,
तु उन्हीं धागों से बुनता क्यूं कफन है,
अर्थियों पर सज रही देह तेरी,
डोलियों में हो रहा श्रृंगार मेरा,
नागफनियों की गली में फूल का व्यापार मेरा…!!
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